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कविता

नई प्रार्थनाएँ

कुमार विक्रम


पक्षियों की तरह उड़ना नहीं
मछलियों की तरह तैरना नहीं
चीते की तरह तेज दौड़ना नहीं
हाथी की तरह बलशाली नहीं
कुत्ते की तरह वफादार नहीं
गधे की तरह खटना नहीं
महापुरुषों की तरह अजर-अमर होना नहीं
इनसानों को अब अपने सपने
कुछ और बड़े, कुछ और वृहत बुनने होंगे
अपनी प्रार्थनाएँ कुछ और विकट गढ़ने होंगे
जैसे इनसानी खून को रिसते देख
उसे टपकने से पहले
रोक देने की संवेदना और उबाल की दरकार
बीमार का हाल-चाल पूछने का सलीका
बूढ़े-बुजूर्ग को सड़क पार कराने की कला
बच्चे को कंधे पर बिठा
दुनियाँ की सैर कराने का विज्ञान
झूठ को झूठ
और सत्य को सत्य
कहने की हिम्मत और जरूरत।


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